Tripursundari Ved Gurukulam - वेदत्रयी

 

 

वेदत्रयी


।। श्री वेद पुरुषाय नमः ।।

गणनाथ सरस्वती रविशुक्र बृहस्पतीन्।

पञ्चैतान् संस्मरन्नित्यं वेदवाणीं प्रवर्तयेत्।।

 


संस्कृत साहित्य में शब्द-प्रयोग की तीन शैलियाँ होती है; जो पद्य (कविता), गद्य और गानरुप से प्रसिद्ध हैं।

 

पद्य में अक्षर-संख्या तथा पाद एवं विराम का निश्चित नियम होता है। अतः निश्चित अक्षर-संख्या तथा पाद एवं विराम वाले वेद-मन्त्रों की संज्ञा 'ऋक्' है।

 

जिन मन्त्रों में छन्द के नियमानुसार अक्षर-संख्या तथा पाद एवं विराम ऋषिदृष्ट नहीं है, वे गद्यात्मक मन्त्र 'यजुः' कहलाते हैं।

 

जितने मन्त्र गानात्मक हैं, वे मन्त्र ‘'साम'’ कहलाते हैं। इन तीन प्रकार की शब्द-प्रकाशन-शैलियों के आधार पर ही शास्त्र एवं लोक में वेद के लिये ‘त्रयी’ शब्द का भी व्यवहार किया जाता है।

 

वेदों के मंत्रों के 'पद्य, गद्य और गान' ऐसे तीन विभाग होते हैं। हर एक भाषा के ग्रंथों में पद्य, गद्य और गान ऐसे तीन भाग होते ही हैं। वैसे ही ये वैदिक वाङ्मय के तीन भाग है-


(१) वेद का पद्य भाग - ऋग्वेद, अथर्ववेद

(२) वेद का गद्य भाग - यजुर्वेद

(३) वेद का गायन भाग - सामवेद


इनको 'वेदत्रयी' कहते हैं, अर्थात् ये वेद के तीन विभाग हैं। ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद यह 'त्रयीविद्या' है। इसका भाव यह है कि—

 

  1. ऋग्वेद पद्यसंग्रह है।

  2. यजुर्वेद गद्यसंग्रह है।

  3. और सामवेद गानसंग्रह है।


इस ऋक्संग्रह में अथर्ववेद सम्मिलित है, ऐसा समझना चाहिए। इसका कारण यह है कि अथर्ववेद भी पद्य संग्रह ही है। यजुर्वेद गद्य संग्रह है, अत: इस यजुर्वेद में जो ऋग्वेद के छंदोबद्ध मंत्र हैं, उनको भी यजुर्वेद पढ़ने के समय गद्य जैसा ही पढ़ा जाता है।


एक एव पुरा वेद: प्रणव: सर्ववाङ्मय - महाभारत


बाद में वेद को पढ़ना बहुत कठिन प्रतीत होने लगा, इसलिए उसी एक वेद के तीन विभाग करने पर वेदत्रयी और चार विभाग करने पर चतुर्वेद कहलाते हैं।


आचार्य धीरेन्द्र