Tripursundari Ved Gurukulam - ACHARYA DHIRENDRA JI
आचार्यश्री का एक परिचय
आचार्य या गुरु श्रोत्रीय हो व ब्रह्मनिष्ठ भी यह शास्त्रा आज्ञा है।
वैदिक संस्कृत परम्परा की विलक्षण वाग्धारा की उत्ताल उर्मि के रसमय एवं भावमय वाहक श्रद्धेय आचार्य श्री धीरेन्द्र जी का जन्म रीवा जिले के निकट ग्राम बड़ी हर्दी (म. प्र.) में 02.10.1979 को हुआ।
आपके पूज्य पिता वैकुण्ठवासी पं. श्रीरविशंकर जी पाण्डेय एवं माता श्रीमती कुन्ती देवी पाण्डेय एक निष्ठावान् भगवत् प्रेमी हैं।
आपने प्रारम्भिक शिक्षा अपने ही जन्म स्थान में ग्रहण की। 1993 में आपनें महर्षि वेद विज्ञान विश्व विद्यापीठ जबलपुर (म.प्र.) में प्रवेश लेकर शुक्लयजुर्वेद, कर्मकाण्ड एवं ज्योतिष शास्त्र का गहन अध्ययन किया, और 1998 से आपने श्रीधम-वृन्दावन में स्थाई रूप से निवास कर सात वर्षों तक श्रीमद्भागवत् महापुराण का भावमय अध्ययन कर आपनें उपनिषदों, श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्देवीभागवत्, श्रीबाल्मीकिरामायण के साथ-साथ अन्य पुराणों में एवं संगीत में भी प्रवेश लिया।
आपने ने आचार्य की परीक्षा सम्पूर्णानन्द विश्व विद्यालय से उत्तीर्ण की, आपके पिता आपको योग्य एवं निपुण-वक्ता एवं धर्म प्रचारक के रूप में देखना चाहते थे।
अतः आपने अथक परिश्रम करके, एवं जगदम्बा की कृपा से व श्रीराधाकृष्ण की महती अनुकम्पा से अट्ठारह वर्ष की आयु से ही श्रीमद्भागवत् का भावमय एवं रसमय प्रवचन करते आ रहे हैं। आपकी लेखन कार्य में रुचि प्रारम्भ काल से ही रही है, अतः आपने कम उम्र में ही 18 पुस्तकों का लेखन कार्य पूर्णकर लोकार्पण कर दिया है; आपने बाल्यावस्था में ही सम्पूर्ण भारत के अनेक तीर्थों की यात्रा एवं साधना की।
आपने 08.02.2002 में ‘श्री त्रिपुरसुन्दरी शक्ति समिति’ की स्थापना की व 2010 में दिल्ली से रजिस्टेशन प्राप्तकर 2012 में ‘‘श्रीत्रिपुरसुन्दरी वेद गुरुकुल’’ का शिलान्यास कराया।
2014 ‘‘श्रीत्रिपुरसुन्दरी वेद गुरुकुल’’ का उद्घाटन कर 35 विद्यार्थियों की सेवा निःशुल्क-रूप से प्रारम्भ की, आज बटुक-ब्रह्मचारी वेद आदि का भलीभाँति अध्ययन पूज्य आचार्यश्री के द्वारा कर रहे हैं।
इस समिति के माध्यम से समस्त प्राणियों को आध्यात्म ज्ञान और संस्कृति व ऋषि-परम्परा स्थाई रूप से चलती रहे, एवं जन-जन में भगवत् प्रचार-प्रसार हो।
आपकी मान्यता है कि मानव सेवा माधव तक पहुँचाती है। इस संकल्प से ऐसा विश्वास है कि हमारी ऋषि परम्परा, एवं संस्कृति का उत्थान होगा।
आपकी शास्त्रा सम्मत मान्यता है कि भागवत् एवं सभी सनातन ग्रन्थ भगवत् स्वरूप हैं सभी मनुष्यों को समस्त ग्रन्थों का पठन-पाठन व श्रवण कर ऋषि परम्परा का निर्वाह करना चाहिये। जिससे जीवन पुष्पित, पल्लवित एवं फलित होता है।
गुरुकुल परिवार